( 1 ) विश्व के जैविक तथा अजैविक तथ्यों का मानव के वितरण के सम्बन्ध में विवरण प्रस्तुत करना - मानवीय संसार के रूप में पृथ्वी का संगठित ज्ञान ही मानव भूगोल कहलाता है जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व के जैविक तथा अजैविक तथ्यों का मानव के वितरण के सम्बन्ध में विवरण प्रस्तुत करना है। मानव भूगोल में मनुष्य के स्थानिक वितरण के साथ ही उसकी भौगोलिक सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में सम्पूर्ण गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल में मनुष्य के अपने वातावरण से सम्बन्धों को महत्वपूर्ण माना जाता है। ये प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दो प्रकार के होते हैं। प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण की शक्तियों, प्रक्रियाओं तथा तथ्यों के प्रभावों व उनमें मानव द्वारा किये गये परिवर्तनों का अध्ययन मानव भूगोल का प्रमुख उद्देश्य है। मानव भूगोल में यह भी विश्लेषण किया जाता है कि पृथ्वी तल पर रहने वाला मानव समूह अपने वातावरण का किस प्रकार उपयोग करता है। मानव वातावरण के अन्तर्सम्बन्धों के प्रादेशिक अध्ययन के रूप में ब्रून्स ने मानव भूगोल का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए लिखा है कि "मानव भूगोल का उद्देश्य मानव क्रिया-कलापों तथा भौतिक भूगोल के दृश्यों के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन करना है।"









( 2 ) स्थानीय विभिन्नताओं तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी का विवरण प्रस्तुत करना - पृथ्वी पर स्थित धरातलीय भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए मानव निवास स्थलों का अध्ययन उनकी क्षेत्रीय स्थिति के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। वर्तमान समय में जब दूरियां संकुचित होती जा रही हैं तथा पूरी दुनिया एक 'विश्व गांव' बनती जा रही है तब पृथ्वी के विशिष्टीकरण पर भी समान रूप से ध्यानाकर्षण आवश्यक हो गया है। इस दृष्टि से मानव भूगोल ही ऐसे क्षेत्र व स्थान की विशेषताओं को समझाने का प्रयास करता है। पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों की प्रकृति स्वतंत्र न होकर सुदूरवर्ती स्थानों द्वारा भी प्रभावित एवं नियंत्रित होती है। विश्व के विभिन्न देशों एवं उनके पारस्परिक सम्बन्धों के विश्लेषण द्वारा हम भूगोल का उद्देश्य निर्धारित कर पाते हैं। इस दृष्टि से मानव भूगोल का उद्देश्य सम्पूर्ण पृथ्वी का विवरण स्थानीय विभिन्नताओं तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर मानव संसार के रूप में प्रस्तुत करना है ।


( 3 ) विभिन्न प्रदेशों के स्थानिक सम्बन्धों का अध्ययन करना-मानव भूगोल विभिन्न मानव समूहों द्वारा प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के साथ किये समायोजन तथा क्षेत्रीय संगठन का अध्ययन भी प्रस्तुत करता है। मानव और वातावरण के मध्य पारिस्थितिकीय एवं कार्यात्मक सम्बन्ध होते हैं। इसी पारिस्थितिकीय सम्बन्धों के अध्ययन को बैरोज ने 'मानव पारिस्थितिकी' (Human Ecology ) कहा था। मानव एवं वातावरण का विश्लेषण करने के साथ ही इनके मध्य पाये जाने वाले क्रियाशील सम्बन्धों का प्रादेशिक अध्ययन मानव भूगोल में किया जाता है। मानव भूगोल में प्रत्येक मानव का अलग अध्ययन न करके मानव वर्गों तथा प्रदेश वातावरण के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। प्रत्येक प्रदेश में मानव वर्गों के प्रादेशिक वातावरण से पारिस्थितिक सम्बन्ध होते हैं तथा इसी प्रकार प्रत्येक प्रदेश के दूसरे प्रदेश से स्थानिक सम्बन्ध होते हैं । विभिन्न प्रदेशों के मध्य विद्यमान इन सम्बन्धों का प्रयोग करके ही मानव वर्ग प्रादेशिक समायोजन करते हैं। विभिन्नप्रदेशों के स्थानिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव भूगोल में होता है।

 ( 4 ) तथ्यों के विकास क्रम को समयबद्ध प्रस्तुत करना - मनुष्य के इस प्रकृति में उद्भव, विकास तथा सम्पूर्ण क्रियाकलाप एक निश्चित समय सारणी के अनुसार होते हैं। इस समय सारणी के अध्ययन को 'मानव भूगोल के अध्ययन का कालिक पक्ष' (Temporal Aspect) कहते हैं। कालिक या काल पक्ष के अन्तर्गत विभिन्न क्रिया-कलापों, पर्यावरणीय समायोजन के समयबद्ध विवरण आदि के साथ मानव भूगोल के तथ्यों के विकास के अध्ययन को शामिल किया जाता है। इस विकास-क्रम को 'कालिक अनुक्रमण' कहते हैं। मानव भूगोल का इसके तथ्यों के विकास क्रम को समयबद्ध प्रस्तुत करना मुख्य उद्देश्य है।


(5) स्थानिक वितरण को महत्वपूर्ण अंग माना जाना-मानव भूगोल में स्थानिक वितरण को एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। घनत्व, वितरण तथा प्रतिरूप स्थानिक वितरण के तीन प्रमुख पक्ष हैं। अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत किसी तथ्य की उपस्थिति की कुल बारम्बारता जो कि क्षेत्र के विस्तार की आनुपातिक होती है, घनत्व कहलाती है। इसी प्रकार वितरण किसी लक्षण के प्रसार की सीमा है जो कि अध्ययन क्षेत्र के आकार के आनुपातिक होता है। प्रतिरूप किसी तथ्य का ज्यामितिक विन्यास होता है जिसे अध्ययन क्षेत्र के आकार को ध्यान दिये बिना प्रदर्शित किया जाता है ।


( 6 ) क्रिया-कलापों की आन्तरिक सम्बद्धता को सुस्पष्ट करना - मानव भूगोल के अन्तर्गत स्थान को एक विशिष्ट एवं पृथक् लक्षण माना जाता है तथा प्रत्येक स्थान का कोई नाम होता है यथा राजस्थान, बिहार आदि। इनके अलावा विभिन्न प्राकृतिक स्वरूपों को भी स्वीकार किया जाता है, यथा-लाल सागर, छोटा नागपुर का पठार, थार का रेगिस्तान आदि। इन क्षेत्रों में जब स्वरूप एवं विशिष्ट लक्षणों की समरूपता होती है तब उनको प्रदेश कहते हैं, यथा- गंगा का मैदान आदि । इस प्रकार पृथ्वी के किसी विशिष्ट स्थान के संयोजित अध्ययन के लिए प्रादेशिक धारणा की आवश्यकता होती है। प्रदेश में परस्पर विभिन्न तत्वों, उच्चावच, जलवायु, वनस्पति, खनिज, फसल, जनसंख्या आदि के क्रिया-कलापों में पायी जाने वाली आन्तरिक सम्बद्धता को मानव भूगोल सुस्पष्ट रूप में प्रस्तुत करता है।


(7) सांस्कृतिक वातावरण का सृजन कर पारिस्थितिकीय समायोजन की रूपरेखा प्रस्तुत करना - मानव भूगोल पृथ्वी तल पर विभिन्न मानव समूहों द्वारा प्राकृतिक वातावरण के उपयोग, परिवर्तन तथा समायोजन का अध्ययन प्रस्तुत करने के साथ ही वातावरण में विद्यमान संसाधनों का मानव प्रगति के लिए महत्व भी स्पष्ट करता है। मानव भूगोल केवल प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन मात्र न होकर उससे सांस्कृतिक वातावरण के सृजन तथा उसमें भी मानव के पारिस्थितिकीय समायोजन की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। वातावरण में मानव निर्मित या सांस्कृतिक तथ्यों यथा कृषि, पशुचारण, मत्स्य व्यवसाय, वन, उद्योग, आखेट, खनन, विनिर्माण, परिवहन व व्यापार आदि से तथा मानव निवास की बस्तियों, नगरीय जनसंख्या, सघनता, सामाजिक संगठन, विज्ञान तथा प्राविधिकी के आधार पर पारिस्थितिक समायोजन को मापते हैं।