"मानव भूगोल मानव पारिस्थितिकी है।"


“Human Geography is Human Ecology".



(Human Geography is Human Ecology) शिकागो विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध विद्वान् बैरोज ने सन् 1923 में सर्वप्रथम अमेरिकी भूगोलविदों की समिति के अध्यक्षीय भाषण में यह स्पष्ट किया कि मानव भूगोल मानव- पारिस्थितिकी है। पारिस्थितिकी विज्ञान में सम्पूर्ण जीवजगत् एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इस आधार पर मानव पारिस्थितिकी में मानव एवं उसके सामाजिक तथा भौतिक पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मानव पर्यावरणीय सम्बन्धों को महत्त्व दिया जाता है, जिसमें मानव समाज के प्राचीन से लेकर वर्तमान तक के विकास क्रम को शामिल किया जाता है। यह विकास सम्पूर्ण भू-वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक समय के अनुसार नियमन तथा अनुकूलन द्वारा संसार को परिवर्तित करते हुए पूरा हुआ है। मानव भूगोल को मानव-पारिस्थितिकी मानने वाले विद्वान् - मानव पारिस्थितिकी शब्द समाजशास्त्र से भूगोल में आया। जब बैरोज ने भूगोल को मानवपारिस्थितिकी का विज्ञान बतलाया उस समय शिकागो स्कूल के समाजशास्त्रियों के द्वारा इसका अर्थ वर्तमान से अलग लिया गया था। इस प्रकार के विचार का समर्थन करने वाले विद्वानों में पार्क, बर्गेस, थामस तथा बर्थ प्रमुख थे, जिन्होंने पारिस्थितिकी विज्ञान से मानव समाज के विभिन्न मॉडल व सिद्धान्त विकसित करने के लिए अपनाया था।

 बैरोज ने मानव के भौतिक पर्यावरण के साथ समायोजन पर प्रकाश डालते हुए भूगोल की प्रकृति में नियमान्वेषी (Nomothetic) पक्ष को अपनाया था। सन् 1972 में स्टॉकहोम में हुए प्रथम विश्व पर्यावरण सम्मेलन के उपरान्त भूगोल में रिस्थितिकी शब्द का प्रयोग बढ़ा । मानव भूगोल को मानव पारिस्थितिकी मानने वालों का विश्वास था कि प्रकृति में भोजन श्रृंखला के अन्तर्गत सभी प्रकार के जीव समूह व पादपों सहित मानव भी शामिल है। इन विचारों से लामार्कियन कार्यों की पुष्टि हुई जिनका मानना था कि 'प्रत्येक जीव संचेतन रूप में अपने परिवेश में समायोजन कर सकते हैं।' प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में रेट्जेल की राज्य सम्बन्धी जैविक संकल्पना; डेविस की भू-आकृति विज्ञान; कुमारी सेम्पल, हंटिगटन व ग्रिफिथ टेलर के पर्यावरणीय निश्चयवाद; हरबर्टसन के प्रादेशिक भूगोल के चिन्तन आदि के द्वारा यह प्रमाणित हुआ कि मानव भूगोल मानव पारिस्थितिकी है।


आलोचना-मानव भूगोल को मानव पारिस्थितिकी के रूप में पारिस्थितिकी के रूप में परिभाषित करने वाले उपागम की अनेक बिन्दुओं पर आलोचना हुई है । इस परिभाषा ने मानव को पौधों और पशुओं के समकक्ष रखा है, जहां मानव को भी जीवित रहने के लिए अपने पर्यावरण में तथाकथित संघर्ष करना पड़ता है। परन्तु मानव उपकरणों का निर्माता, उनका उपयोगकर्ता और संस्कृति का रचनाकार है। मानव अपने ज्ञान, वैज्ञानिक प्रगति एवं नवप्रवर्तनों के माध्यम से अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने प्राकृतिक आवास और पारिस्थितिकी तंत्र में अत्यधिक परिवर्तन करता रहता है। अपने भोजन के लिए मानव अपने पर्यावरण पर ही निर्भर नहीं रहता है ।


सूखे एवं भोजन की अपर्याप्तता के समय वह सुदूर प्रदेशों से अनाज एवं अन्य उपयोगी वस्तुएँ आयात कर मानव जाति को बचा सकता है । इसके अतिरिक्त मानव अपनी शक्ति, निपुणता एवं प्रौद्योगिकी के आधार पर चावल, गन्ना, रबड़, मसाले जैसी उष्ण कटिबन्धीय फसलों को कृत्रिम दशाएँ उत्पन्न कर शीतोष्ण एवं शीत प्रदेशों में भी उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार मानव जीवन मात्र अपने प्राकृतिक आवास एवं पर्यावरण द्वारा नियंत्रित नहीं होता है। इसके विपरीत, मानव स्वयं अपने प्राकृतिक पर्यावरण में रूपान्तरण करने वाला एक महान् कारक है।


इस प्रकार मानव पारिस्थितिकी के सिद्धान्त मानव समाजों पर उस सीमा तक लागू नहीं होते, जैसे वे पौधों एवं पशुओं पर लागू होते हैं । अतएव, भूगोल न तो मानव पारिस्थितिकी है और न हो सकती है । प्रश्न 4. मानववादी भूगोल का वर्णन कीजिये। Describe the Humanistic Geography. उत्तरमानववादी भूगोल (Humanistic Geography) मानववादी भूगोल का विकास-मानववादी भूगोल का विकास मात्रात्मक भूगोल तथा प्रत्यक्षवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। यह दृष्टिकोण 1960 के दशक के अन्त में आरम्भ हुआ। मानववादी भूगोलवेत्ता मात्रात्मक तकनीकी को अस्वीकार करते हुए मानते हैं कि ये मानवीय विश्व एवं मानवीय मुद्दों यथा सामाजिक संस्थाओं, मूल्य व परम्पराओं के महत्त्व को नहीं समझते हैं। इस प्रकार मानववादी दृष्टिकोण मानवीय चेतना एवं क्रियात्मकता में सक्रिय एवं केन्द्रीय भूमिका एक मानव अभिकर्ता के रूप में प्रदान करता है ।


इसके अतिरिक्त मानवीय समाज के अस्तित्व में संचार को एक मूलभूत कारक माना गया है। यह मुख्य रूप से सहभागिता, अवक्षेपण, चर्चा तथा गुणात्मक दृष्टिकोण पर बल देता है। मानववादी दृष्टिकोण में मानव को कदापि आर्थिक व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है। साथ ही भूगोल को भू-विज्ञान न मानकर मानवहित का विज्ञान माना है जिसमें मानव की सक्रिय तथा केन्द्रीय भूमिका हो तथा मानव विज्ञान व मानव अभिकर्त्ता तथा मानवीय क्रियाशीलता को महत्त्व दिया जाता है ।


काण्ट का भौगोलिक दर्शन एवं मानववादी भूगोलमानववादी भूगोल का विकास काण्ट के भौगोलिक दर्शन से स्पष्ट होता है जिसके विकास में विडाल - डी-ला-ब्लॉश, लाफ्रेबे, कार्ल ओ. सॉवर, हार्ट शोर्न, क्रिंक, तुवान तथा एनी बूटीमर का अतुलनीय योगदान रहा है। इसका समर्थन करते हुए आदर्शवादी विचारक गुएल्के ने स्पष्ट किया है कि "हमने मानव के मस्तिष्क में प्रवेश करने की पद्धति विकसित कर ली है।" उन्होंने स्पष्ट किया कि मानसिक क्रियाशीलता का नियन्त्रण पदार्थ एवं प्रक्रियाओं से नहीं हो सकता अपितु विश्व को अप्रत्यक्ष रूप से विचारों के द्वारा पहचाना जा सकता है जो कि व्यक्ति के विषयगत अनुभव पर आधारित होता है। मानववादी भूगोल का वास्तविक प्रतिपादन - मानववादी भूगोल का वास्तविक प्रतिपादन तुवान ने किया तथा स्पष्ट किया कि भूगोल मानवीय दर्पण है जो कि मानव अस्तित्व तथा जीवन के सार को स्पष्ट करता है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'स्पेस एवं प्लेस' (Space and Place) में बताया कि मानववादी दृष्टिकोण स्थान तथा स्थानिक दूरी के सन्दर्भ में मानवीय अनुभव की सीमा को खोजता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस प्रकार साहित्य कला के अध्ययन से मानवीय जीवन की जानकारी प्राप्त होती है उसी प्रकार किसी भूदृश्य का अध्ययन समाज के सार द्वारा सम्भव है, जिससे वह अस्तित्व में आता है। तुवान महोदय ने माना कि वैज्ञानिक सन्दर्श के अन्दर मानवीय ज्ञान एवं क्षमता को विद्यमान स्तर से कम आंका जाता है जिसके विरुद्ध मानववादी भूगोल यह समझने का प्रयास करता है कि भौगोलिक क्रिया-कलाप तथा परिघटनाओं की अभिव्यक्ति किस प्रकार मानवीय ज्ञान तथा क्षमता के द्वारा होती है ।


मानववादी भूगोल के आधारभूत सार-मानववादी भूगोलविद् तुवान ने मानववादी भूगोल के निम्नलिखित पाँच आधारभूत सार बताये हैं

( 1 ) मानव भूगोलवेत्ता का कार्य भौगोलिक ज्ञान का अध्ययन करनाभौगोलिक ज्ञान की प्रकृति तथा मानव अस्तित्व में मानववादी दृष्टिकोण एक पाश्विक वृत्ति है। यह मानवीय वास्य क्षेत्र, अवस्थिति, स्थान तथा संसाधनों की पूर्ण जानकारी रखता है, लेकिन उसका व्यवहार विभिन्न वर्गों में अलग-अलग मिलता है। अतः एक मानव भूगोलवेत्ता का कार्य इस भौगोलिक ज्ञान का अध्ययन करना है।


(2) मानवीय व्यवहार एवं स्थान की पहचान में क्षेत्रीय भूमिका का महत्त्व-मानवीय व्यवहार एवं स्थान की पहचान में क्षेत्रीय भूमिका का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, जिसमें स्थान तथा भू-भाग का मान एक पाश्विक वृत्ति है तथा मानव भूगोल यह इंगित करने का प्रयास करता कि किस प्रकार एक क्षेत्र गहन रूप से एक मानवीय क्षेत्र के रूप में विकसित हो जाता है।


( 3 ) भीड़-भाड़ तथा गोपनीयता के मध्य अन्तर्सम्बन्धों को स्पष्ट करना- मानववादी दृष्टिकोण भीड़-भाड़ एवं गोपनीयता के मध्य अन्तर्सम्बन्धों को स्पष्ट करता है। भीड़-भाड़ के वातावरण से मानव तथा पशु मानसिक दबाव महसूस करते हैं, जबकि एकान्त क्षेत्र में शिथिलता महसूस करते हैं। एकान्त तथा गोपनीयता से किसी क्षेत्र विशेष के प्रति मानव चिन्तन की प्रक्रिया तथा निर्णयन की क्षमता प्रभावित होती है, जिसका अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।


( 4 ) ज्ञान का प्रभाव - ज्ञान जीवन को प्रभावित करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सभी व्यक्ति तथा व्यावसायिक योजनाकार अपने आर्थिक क्रियाकलापों की कार्य-योजना अपने ज्ञान तथा तकनीकी योग्यता के आधार पर तय करते हैं । निर्णयन की क्रिया में एक सीमा तक योजनाकार आर्थिक सिद्धान्त तथा सहयोग का सहारा लेते हैं जिसके परिणाम कितने लाभदायक होते हैं। इन सभी प्रश्नों का उत्तर मानववादी भूगोलवेत्ता देते हैं।


( 5 ) धर्म की प्रमुख भूमिका होना - मानव की क्रियाशीलता को प्रभावित करने में धर्म की अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रत्येक संस्कृति में धर्म की प्रधानता होती है। मानववादी दृष्टिकोण के अनुसार विश्व एकत्व एवं अर्थ को समझने वाला व्यक्ति ही धार्मिक दृष्टि से युक्त हो सकता है। धार्मिक संस्कृति से विश्व की एक स्पष्ट संरचना होती है जो कि एक धर्म से दूसरे धर्म तथा परस्पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है ।


मानववादी भूगोल की कार्य पद्धति मानववादी भूगोल की कार्य-पद्धति का उल्लेख निम्नलिखित तथ्यों के अन्तर्गत किया गया है


( 1 ) मानवीय चेतना को शामिल करना - मानववादी भूगोल के अन्तर्गत मानवीय चेतना के प्रयास को शामिल किया जाता है। मानवीय अनुभव तथा अभिव्यक्ति के लिए एक विशेष प्रकार के ज्ञान, प्रतिक्रिया तथा तत्त्व से जोड़ा जाता है ।


(2) व्याख्या एवं स्पष्टीकरण के ज्ञान पर आधारित मानववादी भूगोल की कार्य-पद्धति व्याख्या एवं स्पष्टीकरण के ज्ञान पर आधारित है, जिसमें साहित्य की आलोचना, सौन्दर्यबोध तथा कलात्मक इतिहास को प्रमुख रूप से शामिल किया जाता है। ( 3 ) भौगोलिक दृश्य भूमि मानववादी भूगोल भौगोलिक दृश्य भूमि के मौलिक स्वरूप के समक्ष कार्यकरण सम्बन्ध को चिह्नित करता है ।


(4) मानव व स्थान के मध्य सह-सम्बन्ध खोजना - मानववादी भूगोल सांख्यिकीय तथा मात्रात्मक प्रविधियों के विपरीत सहभागी पर्यवेक्षण, सहभागिता, विचारों के आदान-प्रदान तथा तार्किक निष्कर्ष पर बल देकर मानव व स्थान के मध्य सहसम्बन्ध की खोज करता है।


(5) मूल्य आधारित शोध को महत्त्वपूर्ण मानना- मानववादी भूगोलवेत्ता मूल्य आधारित शोध को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। ( 6 ) वैज्ञानिक पर्यवेक्षण से पूर्व विश्व के रहस्यों को उजागर करनामानववाद ऐसा दृष्टिकोण है, जिसमें वैज्ञानिक पर्यवेक्षण से पूर्व विश्व के रहस्यों को उजागर किया जाता है।


( 7 ) संचार मूलभूत कारक होना-मानववादियों ने मानव समाज के अस्तित्व में संचार को एक मूलभूत कारक माना है। उन्होंने मानवीय चेतना को सक्रिय तथा केन्द्रीय भूमिका प्रदान की है।