सहारा रेगिस्तान
विश्व एवं अनीका महाद्वीप के मानचित्र को देखिए। उत्तरी अफ्रीका के बड़े भू-भाग पर फैले सहारा के रेगिस्तान का पता लगाएँ। यह विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान है। यह लगभग 8.54 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
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क्या आपको याद है कि भारत का क्षेत्रफल 3.2 लाख वर्ग किलोमीटर है? सहारा रेगिस्तान ग्यारह देशों से घिरा हुआ है। ये देश हैं-अल्जीरिया, चाड, मिस्र, लीबिया, माली, मौरितानिया, मोरक्को, नाइजर, सूडान, ट्यूनिशिया एवं पश्चिमी सहारा।
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रेगिस्तान के बारे में सोचते समय आपके मस्तिष्क में तुरंत ही रेत का दृश्य उभरता है। परंतु सहारा मरुस्थल बालू की विशाल परतों से ढंका हुआ ही नहीं वरन् वहाँ बजरी के मैदान और नग्न चट्टानी सतह वाले उत्थित पठार भी पाए जाते हैं। ये चट्टानी सतहें कुछ स्थानों पर 2500 मीटर से भी अधिक ऊँची हैं।
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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज का सहारा रेगिस्तान एक समय में पूर्णतया हरा-भरा मैदान था। सहारा की गुफ़ाओं से प्राप्त चित्रों से ज्ञात होता है कि यहाँ नदियाँ तथा मगर पाए जाते थे। हाथी, शेर, जिराफ़, शतुरमुर्ग, भेड़, पशु तथा बकरियाँ सामान्य जानवर थे। परंतु यहाँ के जलवायु परिवर्तन ने इसे बहुत गर्म व शुष्क प्रदेश में बदल दिया है।
सहारा रेगिस्तान की जलवायु
सहारा रेगिस्तान की जलवायु अत्यधिक गर्म एवं शुष्क है। यहाँ की वर्षा ऋतु अल्पकाल के लिए होती है। यहाँ आकाश बादल रहित एवं निर्मल होता है। यहाँ नमी संचय होने की अपेक्षा तेजी से वाष्पित हो जाती है। दिन अविश्वसनीय रूप से गर्म होते हैं। दिन के समय तापमान 50° सेल्सियस से ऊपर पहुँच जाता है, जिससे रेत एवं नग्न चट्टानें अत्यधिक गर्म हो जाती हैं।
सहारा के अल अजीजिया क्षेत्र में, जो त्रिपोली, लीबिया के दक्षिणी भाग में स्थित है, यहाँ का सबसे अधिक तापमान 1922 में 57.7° सेल्सियस दर्ज किया गया था।
इनके ताप का विकिरण होने से चारों तरफ़ सब कुछ गर्म हो जाता है। रातें अत्यधिक ठंडी होती हैं तथा तापमान गिरकर हिमांक बिंदु, लगभग 0° सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
सहारा रेगिस्तान की वनस्पति एवं प्राणिजात
सहारा रेगिस्तान की वनस्पतियों में कैक्टस, खजूर के पेड़ एवं ऐकेशिया पाए जाते हैं। यहाँ कुछ स्थानों पर मरूद्यान-खजूर के पेड़ों से घिरे हरित द्वीप पाए जाते हैं।
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ऊँट, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी, बिच्छू, साँपों की विभिन्न जातियाँ एवं छिपकलियाँ यहाँ के प्रमुख जीव-जंतु हैं।
जब रेत को पवन उड़ा ले जाती है, तो वहाँ गर्त बन जाती है। जहाँ गर्त में भूमिगत जल सतह पर आ जाता है, वहाँ मरूद्यान बनते हैं। ये क्षेत्र उपजाऊ होते हैं। लोग इनके आसपास निवास करते हैं एवं खजूर के पेड़ तथा अन्य फसलें उगाते हैं। कभी-कभी यह मरूद्यान असामान्य रूप से बड़ा भी हो सकता है। मोरक्को में टैफ़िलालेट मरूद्यान ऐसा ही एक विशाल मरूद्यान है, जो 13,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
सहारा रेगिस्तान के लोग
सहारा रेगिस्तान की कष्टकारी जलवायु में भी विभिन्न समुदायों के लोग निवास करते हैं, जो भिन्न-भिन्न क्रियाकलापों में भाग लेते हैं। इनमें बेदुईन एवं तुआरेग भी शामिल हैं। चलवासी जनजाति वाले ये लोग बकरी, भेड़, ऊँट एवं घोड़े जैसे पशुधन को पालते हैं। इन पशुओं से इन लोगों को दूध मिलता है, इनकी खाल से ये पेटी, जूते, पानी की बोतल बनाने के लिए चमड़ा प्राप्त करते हैं तथा पशओं के बालों का उपयोग चटाई, कालीन, कपडे एवं कंबल बनाने के लिए होता है। धूल भरी आँधियों एवं गर्म वायु से बचने के लिए ये लोग भारी वस्त्र पहनते हैं।
सहारा में मरूद्यान एवं मिस्र में नील घाटी लोगों को निवास में मदद करती है। यहाँ जल की उपलब्धता होने से लोग खजूर के पेड़ उगाते हैं। यहाँ चावल, गेहूँ, जौ एवं सेम जैसी फसलें भी उगाई जाती हैं। मिस्र में उगाए जाने वाली कपास पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
तेल की खोज संपूर्ण विश्व में अत्यधिक माँग वाले, इस उत्पाद का अल्जीरिया, लीबिया एवं मिस्र में होने के कारण सहारा रेगिस्तान में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। इस क्षेत्र में प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण खनिजों में लोहा, फॉस्फोरस, मैंगनीज़ एवं यूरेनियम सम्मिलित हैं।
सहारा की सांस्कृतिक जीवनशैली में भी परिवर्तन आ रहा है। आज यहाँ मस्जिदों से ऊँचे काँच की खिड़कियों वाले भवन तथा ऊँटों के प्राचीन मार्ग के स्थान पर सुपर महामार्ग बन गए हैं। नमक के व्यापार में ऊँटों का स्थान ट्रक ले रहे हैं। तुआरेग लोग विदेशी पर्यटकों के लिए मार्गदर्शक का काम कर रहे हैं। आज अनेक चलवासी जनजाति के लोग शहरी जीवन की ओर जा रहे हैं, जहाँ वे तेल एवं गैस के कार्यों में नौकरी ढूँढ़ते हैं।