मानव भूगोल के क्षेत्र का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-





( 1 ) स्वरूप निर्धारण - मानव भूगोल का स्वतन्त्र विषय के रूप में विकास 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तथा 20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में हुआ। अतः यह अभी एक प्रगतिशील विज्ञान है। इसमें प्रारम्भिक समय में केवल मनुष्य के क्रिया-कलापों का ही अध्ययन किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे मानव पर पर्यावरणीय प्रभावों तथा समायोजन को महत्त्व दिया गया। 19वीं शताब्दी में सर्वप्रथम फ्रेडरिक रेट्जेल ने भौगोलिक अध्ययन में मानवीय पक्ष को भौतिक परिवेश से अलग रूप में स्थापित करके मानव भूगोल को जन्म दिया। रेट्जेल के ग्रन्थ ‘एन्थ्रोपोज्यॉग्राफी' से मानव भूगोल का विकास हुआ। इससे पूर्व मानवीय पक्षों का अध्ययन भौतिक पक्षों के साथ ही सामान्य भूगोल में किया जाता था। मानव भूगोल के व्यवस्थित विकास के साथ ही इसके विषय क्षेत्र का स्वरूप निर्धारित हुआ।


( 2 ) मानव समूहों के आपसी सम्बन्धों के मध्य की विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाना-वर्तमान समय में मानव भूगोल का विषय क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है जिसमें सम्पूर्ण पृथ्वी तल के प्रदेशों के प्राकृतिक वातावरण तथा उसमें रहने वाले मानव समूहों के आपसी सम्बन्धों के मध्य की विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इस सम्पूर्ण व्यवस्था में किसी प्रदेश की जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधन, सांस्कृतिक वातावरण तथा इन सभी तथ्यों के मध्य के कार्यात्मक सम्बन्धों का अध्ययन समाहित है, जिसका प्रमुख उद्देश्य मानव भूगोल में प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण की पृष्ठभूमि में मानवीय क्रिया-कलापों का स्थानिक वितरण के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाना है ।


( 3 ) प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के तत्वों का अध्ययन किया जाना-प्राकृतिक वातावरण के तत्वों में स्थलाकृति, जलराशियाँ, जलवायु, वनस्पति तथा खनिज व सांस्कृतिक वातावरण के तत्वों में जनसंख्या, मानव व्यवसाय, अधिवास, यातायात के साधन, व्यापार व शिक्षा आदि को शामिल किया जाता है। मानव भूगोल में प्राकृतिक वातावरण के तत्वों का अध्ययन केवल मानवीय गतिविधियों को प्रोत्साहन व बाधा उत्पन्न करने तथा उनके साथ समायोजन के सन्दर्भ में किया जाता है, जबकि उनके उद्भव एवं वितरण का अध्ययन मूलतः भौतिक भूगोल का विषय क्षेत्र है। दूसरी तरफ मानव भूगोल में प्राकृतिक वातावरण का उपयोग करके विकसित किये गये सांस्कृतिक भूदृश्यों का अध्ययन किया जाता है।

( 4 ) विषय क्षेत्र के प्रमुख तत्व - विभिन्न दृष्टिकोणों से विश्लेषण करके मानव भूगोल के विषय क्षेत्र में निम्नांकित तत्वों को शामिल किया जा सकता है(i) जनसंख्या का भौगोलिक अध्ययन | (ii) किसी प्रदेश के प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन।

(iii) मानव द्वारा वातावरण समायोजन का अध्ययन |

(iv) किसी प्रदेश का स्थानिक संगठन का अध्ययन ।

(v) पृथ्वी तल पर विभिन्न परिवेशों में निवास करने वाले मानव समूहों के सम्पूर्ण क्रिया-कलापों का अध्ययन

। (vi) कालिक अनुक्रमण का अध्ययन, जिसमें समय के साथ विकास की दशाओं का विवरण प्रस्तुत किया जाता है।

(vii) सांस्कृतिक भूदृश्यों (Cultural Landscape) का अध्ययन (5) मानव द्वारा प्राकृतिक वातावरण के क्रिया-कलापों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करनापृथ्वी तल पर किसी प्रदेश का प्राकृतिक वातावरण वहाँ रहने वाले मानव समूहों के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्रिया-कलापों को प्रभावित करता है। इसी प्रकार मानव समूह भी इसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते हैं। पृथ्वी पर इन सभी क्रिया-कलापों का अध्ययन मानव भूगोल में किया जाता है। ये समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। शुरू में मानव के पर्यावरण के साथ मित्रतापूर्वक सम्बन्ध थे लेकिन कृषि एवं औद्योगिक क्रान्तियों के उपरान्त मानव वातावरण सम्बन्धों में भी काफी परिवर्तन आया है। मानव ने पर्यावरण के अधिकतम दोहन की नवीन तकनीक विकसित कर ली है, जिसके फलस्वरूप अनेक पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो गये हैं। अतः मानव भूगोल का अध्ययन क्षेत्र भी इन्हीं के साथ विस्तृत होता जा रहा है।

मानव भूगोल की प्रकृति - मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानवजनित सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्य क्रिया के द्वारा करता है। भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्वों में भू-आकृति, मृदाएँ, जलवायु, जल, प्राकृतिक वनस्पति तथा विविध प्राणिजात तथा वनस्पतिजात आदि आते हैं। मानव अपने क्रियाकलापों द्वारा भौतिक पर्यावरण में वृहत् स्तरीय परिवर्तन कर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक भू-दृश्यों (पर्यावरण) का निर्माण करता है। गृह, गाँव, नगर, सड़कों व रेलों का जाल, उद्योग, खेत, पत्तन, दैनिक उपयोग

में आने वाली वस्तुएँ भौतिक संस्कृति के अन्य सभी तत्त्व सांस्कृतिक भू-दृश्य के ही अंग हैं । वस्तुतः मानवीय क्रियाकलापों को भौतिक पर्यावरण के साथ-साथ मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्य या सांस्कृतिक पर्यावरण भी प्रभावित करते हैं।